Sushmita Banerji 1954—2010

Monday, August 23, 2010

Janam Din ki Shubhkamna - from Hari



सुष्मिता के जन्मदिन की शुभकामना कहाँ भेजूँ ? इस लिय शुभकामना उन सब को जो आज सुष्मिता की यादों के साथ हैं.  हो सकता है कोई यादों को एक पुस्तक का रुप दे सके जो सुष्मिता को बधाई का एक बेहतर माध्यम हो सकेगा.


हरि

1 comment:

  1. सुश्मिताजी के साथ मेरा पहला परिचय १९९५ के आस-पास हुआ था, जन स्म्पलव नामक मासिक पुस्तिका के प्रकाशन के लिए ! उस समय से आज तक मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा की सुश्मिताजी मेरे परिवार से बाहर का कोई सदस्य हैं ! उनका सरल व्यवहार इतना सरल होता था जैसे की छोटे बच्चे की निश्छलता! यही वजह थी की मै उनके सामने कभी कभी गुस्सा भी हो जाया करता था जैसे की मै अपनी माँ के सामने होता हूँ अक्सर, और वह बहुत सहज भांप लेती थी की मुझे किस बात का बुरा लगा है और बस उनकी एक मुस्कान से सब कुछ सामान्य हो जाता था!

    सुश्मिताजी कहा करती थी की अपने समूह में मै ही उनकी तरह सुबह जल्दी उठता हूँ बाकि ज्यादातर लोग लेट सोते और लेट उठते है | ये सुनकर मुझे अच्छा लगता था |

    सुश्मिताजी ने काम के लिए कभी भी अपने आग्रह मुझ पर थोपने की कोशिश नहीं की बल्कि उनकी पूरी कोशिश होती थी की मै उनके आग्रह से प्रभावित हुए बिना अपने काम में अपना १०० % लगाऊं | शायद यही वजह रही की नरेगा वाली सामग्री इतनी अच्छी बन सकी जिसके चित्रों की तारीफ बहुत लोगों ने की और वह काम मुझे भी बहुत पसंद है| मेरा गाँव वाली पुस्तक के कवर पेज को आज भी "unops" वाली अमृताजी ने अपने DISPLAY बोर्ड पर लगा रखा है|

    सुश्मिताजी का जिक्र हो और हितेन्द्रजी की बात नहीं की जाये तो बात अधूरी रह जाएगी, इन्सान एक सामाजिक प्राणी है और सामजिक रिश्तों में गुंथा रहता है लेकिन सिर्फ रिश्तों के लिए जीना कोई हितेंद्रजी से सीखे | सुश्मिताजी की जितनी सेवा हितेन्द्रजी ने की है शायद किसी ने नहीं की| ऊपर से भाई साहब इसका श्रेय भी लेने के इच्छुक नहीं| हो सकता है मै ये जो लिख रहा हूँ ये भी उन्हें ठीक नहीं लगे| इसके लिए मै पहले ही क्षमा याचना करलेता हूँ|

    खैर सुश्मिताजी के जितना निश्छल और सरल जीवन एक प्रेम से भरे ह्रदय वाला इन्सान ही जी सकता है| उनका प्रेम ही है जो आज भी हमें महसूस करवाता है की वह आज भी यहीं कहीं हैं हमारे बीच|

    योगीराज

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