सुष्मिता नहीं रहीं, यह खबर मुझे बंगलौर में हार्डी भाई यानी ह्दयकांत दीवान ने दी। यह संयोग ही था कि 24-25 जुलाई को मैं भोपाल में था। एकलव्य ने बालसाहित्य पर एक कार्यशाला का आयोजन किया था। उसमें भाग लेते हुए मुझे सुष्मिता की याद आ रही थी। तब पता नहीं था कि दो दिन बाद ही उनके नहीं रहने का समाचार मिलेगा। वैसे यह कहना सही नहीं है कि वे नहीं हैं। वे तो हैं हम सबके बीच । हमें बस उन्हें महसूस करने की जरूरत है। मेरा पहला परिचय किशोर भारती में हुआ था उनसे। आरती साहनी भी साथ थीं। मैं उन दिनों एकलव्य में था। फिर सुष्मिता भी एकलव्य में आ गई थीं। पर वे ज्यादा दिन नहीं रहीं। उज्जैन में स्थानीय इतिहास पर एक कार्यशाला का आयोजन हुआ था,उसमें निकट से जानने का मौका मिला। मैं और मेरी पत्नी नीमा उन्हें याद करते हैं। हमारी शादी के मौके पर 1985 में उन्होंने एक गीत गाया था, पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। सुष्मिता जब से जयपुर में रहने लगी थीं। तब से दो तीन बार ही मुलाकात हुई। पर फोन पर बात होती ही रहती थी। नालंदा के लिए उनकी दो कहानियों का संपादन मैंने किया था और उन्हें चित्रकथा में बदलवाया था। दुर्योग से ये किताबें प्रकाशित नहीं हो पाईं। उनके द्वारा संपादित जनसंपल्व के अंक अब तक मैंने संभाल कर रखें हैं। बल्कि उनमें प्रकाशित सामग्री का उपयोग कई अन्य जगह किया भी है। ऐसी कितनी बातें हैं जिन्हें याद करते हुए हम सुष्मिता को कभी अपने से दूर नहीं कर पाएंगे। यही उनके लिए सच्ची श्रदांजलि होगी।
koi apna jab apne beech nahi rahta hai to uski yaaden yun hi hamen bahut maukon par yaadi aati hai.. Sushmita ji ko hamari or se shrdha suman.. prastuti hetu aapka abhar!
koi apna jab apne beech nahi rahta hai to uski yaaden yun hi hamen bahut maukon par yaadi aati hai..
ReplyDeleteSushmita ji ko hamari or se shrdha suman..
prastuti hetu aapka abhar!